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गीता प्रेस, गोरखपुर >> अमृत के घूँट

अमृत के घूँट

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :185
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5984
आईएसबीएन :81-293-0130-X

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प्रस्तुत है पुस्तक अमृत के घूँट.....

जीवन का सर्वोपरि लाभ

एक विद्वान् लिखते हैं, संसारमें अनेक प्रकारके लाभ हैं-धन, मान, पद, प्रतिष्ठा, स्त्री, पुत्र, स्वास्थ्य, सहयोग, विद्या, बुद्धि, मनोरंजन, वैभव, सम्पन्नता, साधन, स्थान आदि। इन सांसारिक लाभोंके अर्जनमें मनुष्य जीवनभर लगा रहता है। जितने अंशोंमें उसे ये लाभ मिल जाते हैं, उतने ही अंशोंमें तृप्ति एवं सन्तोष भी मिल जाता है। तदनुसार उतने ही अंशोंमें प्रसन्नता भी प्राप्त होती है। पर यह सन्तोष, यह तृप्ति, यह प्रसन्नता क्षणिक है। ये वस्तुएँ परिवर्तनशील और नाशवान् हैं। आत्मिक सुख स्थायी वस्तु है। अध्यात्मवाद जीवनका वह तत्त्वज्ञान है जिसपर हमारी सब भीतरी-बाहरी उन्नति, समृद्धि, सुख एवं शान्ति निर्भर है। अध्यात्मवाद वह महाविज्ञान है, जिसकी जानकारी के बिना भूतल के समस्त वैभव निरर्थक है और जिसके थोड़ा-सा भी प्राप्त हो जानेपर जीवन आनन्दसे ओत-प्रोत हो जाता है। यों तो संसार में सीखने योग्य अनेक वस्तुएँ है, पर सबसे पहले जिसे सीखने और हृदयंगम करनेकी आवश्यकता है, वह अध्यात्मवाद ही है।

इन शब्दोंमें गहरा सत्य है। वह व्यक्ति निश्चय ही धन्य है जिसने अध्यात्म-पथको अपनाया है। संसारके माया-मोह-जालमें रहकर यदि किसी दृष्टिकोणसे आन्तरिक शान्ति प्राप्त हो सकती है तो वह आध्यात्मिक दृष्टिकोण ही है।

अध्यात्म क्या है? संसारमें प्रायः सभी पदार्थ नश्वर है। हमारे सांसारिक जीवन-मूल्य भी नश्वर है। उनमें एक ही ऐसा तत्त्व है, जो अमर है, शाश्वत है और कभी न बदलनेवाला है। वह तत्त्व हमारी आत्मा है। हमारी आत्मा संसारमें व्याप्त परमात्माका एक अंश है। यह आत्मतत्त्व हमें प्रेम, सहानुभूति, सच्चाई, दूसरोंकी सहायता, दुर्बलोंकी सेवा और सदाचरण करनेको प्रेरित किया जाता है।

जो व्यक्ति सांसारिकता छोड़कर अपनी आत्माके दिव्य गुणोंकी अभिवृद्धिमें लग जाता है, उसे आन्तरिक सन्तोष, प्रेम, आत्मीयता, आनन्द एवं उल्लास प्राप्त होता है। उसकी दैवी सम्पदाएँ उत्तरोत्तर विकसित होती हैं। यह आत्मनिर्माण ही सबसे बड़ा पुण्य परमार्थ है। यह कार्य करनेपर मनुष्यके कुसंस्कार, ईर्ष्या, तृष्णा, द्रोह, क्षोभ, भय तथा वासनाएँ दग्ध हो जाती हैं। अध्यात्मवादको ग्रहण करना अपनी तुच्छता, दीनता, हीनता और दासताको त्यागकर निर्भयता, सत्यता, पवित्रता, प्रसन्नता आदि आत्मिक प्रवृत्तियोंको बढ़ाना है।

अध्यात्मवाद असत्से सत्की ओर ले जाता है। आगे बढ़नेके लिये सत्य, प्रेम और न्यायका मार्ग दिखाता है। वासनाविहीन जीवन व्यतीत करनेके लिये प्रोत्साहित करता है। आध्यात्मिक मनुष्य अन्तर्मुखी होता है। बाह्य संसारमें उसे ऐसी वस्तुएँ नहीं मिलतीं जिनमें स्थायी सुख हो। सांसारिक सुख तो अल्पकालमें ही समाप्त हो जाते हैं और उलटे दुःखका कारण बनते हैं, किन्तु जिस व्यक्तिको आध्यात्मिक सुख प्राप्त हो जाता है वह संसारकी क्षुद्रताओंमें लिप्त नहीं रहता। उसे इन्द्रियोंके स्वरूपका यथार्थ ज्ञान हो जाता है। वह सांसारिकता की असारताको समझ लेता है।

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    अनुक्रम

  1. निवेदन
  2. आपकी विचारधारा की सही दिशा यह है
  3. हित-प्रेरक संकल्प
  4. सुख और स्वास्थ के लिये धन अनिवार्य नहीं है
  5. रुपये से क्या मिलता है और क्या नहीं
  6. चिन्ता एक मूर्खतापूर्वक आदत
  7. जीवन का यह सूनापन!
  8. नये ढंग से जीवन व्यतीत कीजिये
  9. अवकाश-प्राप्त जीवन भी दिलचस्प बन सकता है
  10. जीवन मृदु कैसे बने?
  11. मानव-हृदय में सत्-असत् का यह अनवरत युद्ध
  12. अपने विवेकको जागरूक रखिये
  13. कौन-सा मार्ग ग्रहण करें?
  14. बेईमानी एक मूर्खता है
  15. डायरी लिखने से दोष दूर होते हैं
  16. भगवदर्पण करें
  17. प्रायश्चित्त कैसे करें?
  18. हिंदू गृहस्थ के लिये पाँच महायज्ञ
  19. मनुष्यत्व को जीवित रखनेका उपाय-अर्थशौच
  20. पाठ का दैवी प्रभाव
  21. भूल को स्वीकार करने से पाप-नाश
  22. दूसरों की भूलें देखने की प्रवृत्ति
  23. एक मानसिक व्यथा-निराकरण के उपाय
  24. सुख किसमें है?
  25. कामभाव का कल्याणकारी प्रकाश
  26. समस्त उलझनों का एक हल
  27. असीम शक्तियोंकी प्रतीक हमारी ये देवमूर्तियाँ
  28. हिंदू-देवताओंके विचित्र वाहन, देश और चरित्र
  29. भोजनकी सात्त्विकता से मनकी पवित्रता आती है!
  30. भोजन का आध्यात्मिक उद्देश्य
  31. सात्त्विक आहार क्या है?
  32. मन को विकृत करनेवाला राजसी आहार क्या है?
  33. तामसी आहार क्या है?
  34. स्थायी सुख की प्राप्ति
  35. मध्यवर्ग सुख से दूर
  36. इन वस्तुओं में केवल सुखाभास है
  37. जीवन का स्थायी सुख
  38. आन्तरिक सुख
  39. सन्तोषामृत पिया करें
  40. प्राप्त का आदर करना सीखिये
  41. ज्ञान के नेत्र
  42. शान्ति की गोद में
  43. शान्ति आन्तरिक है
  44. सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ
  45. आत्मनिर्माण कैसे हो?
  46. परमार्थ के पथपर
  47. सदुपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनिये
  48. गुप्त सामर्थ्य
  49. आनन्द प्राप्त करनेके अचूक उपाय
  50. अपने दिव्य सामर्थ्यों को विकसित कीजिये
  51. पाप से छूटने के उपाय
  52. पापसे कैसे बचें?
  53. पापों के प्रतीकार के लिये झींके नहीं, सत्कर्म करे!
  54. जीवन का सर्वोपरि लाभ
  55. वैराग्यपूर्ण स्थिति
  56. अपने-आपको आत्मा मानिये
  57. ईश्वरत्व बोलता है
  58. सुखद भविष्य में विश्वास करें
  59. मृत्यु का सौन्दर्य

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